फाँसी पर लटकाये जाने से 3 दिन पूर्व – 20 मार्च, 1931 को – भगतसिंह, सुखदेव
और राजगुरु ने पंजाब के गवर्नर को यह पत्र भेजकर माँग की थी कि उन्हें
युद्धबन्दी माना जाये तथा फाँसी पर लटकाये जाने के बजाय गोली से उड़ा दिया
जाये।
20 मार्च, 1931
प्रति, गवर्नर पंजाब, शिमला
महोदय,
उचित सम्मान के साथ हम नीचे लिखी बातें आपकी सेवा में रख रहे हैं –
भारत की ब्रिटिश सरकार के सर्वोच्च
अधिकारी वायसराय ने एक विशेष अध्यादेश जारी करके लाहौर षड्यन्त्र अभियोग की
सुनवायी के लिए एक विशेष न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) स्थापित किया था, जिसने
7 अक्टूबर, 1930 को हमें फाँसी का दण्ड सुनाया। हमारे विरुद्ध सबसे बड़ा
आरोप यह लगाया गया है कि हमने सम्राट जॉर्ज पंचम के विरुद्ध युद्ध किया है।
न्यायालय के इस निर्णय से दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं –
पहली यह कि अंग्रेज़ जाति और भारतीय जनता
के मध्य एक युद्ध चल रहा है। दूसरे यह कि हमने निश्चित रूप में इस युद्ध
में भाग लिया है, अतः हम युद्धबन्दी हैं।
यद्यपि इनकी व्याख्या में बहुत सीमा तक
अतिशयोक्ति से काम लिया गया है, तथापि हम यह कहे बिना नहीं रह सकते कि ऐसा
करके हमें सम्मानित किया गया है। पहली बात के सम्बन्ध में हम तनिक विस्तार
से प्रकाश डालना चाहते हैं। हम नहीं समझते कि प्रत्यक्ष रूप में ऐसी कोई
लड़ाई छिड़ी हुई है। हम नहीं जानते कि युद्ध छिड़ने से न्यायालय का आशय क्या
है? परन्तु हम इस व्याख्या को स्वीकार करते हैं और साथ ही इसे इसके ठीक
सन्दर्भ में समझाना चाहते हैं।
युद्ध की स्थिति
हम यह कहना चाहते हैं कि युद्ध छिड़ा हुआ
है और यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी जब तक कि शक्तिशाली व्यक्तियों ने भारतीय
जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार कर रखा है – चाहे ऐसे
व्यक्ति अंग्रेज़ पूँजीपति और अंग्रेज़ या सर्वथा भारतीय ही हों, उन्होंने
आपस में मिलकर एक लूट जारी कर रखी है। चाहे शुद्ध भारतीय पूँजीपतियों के
द्वारा ही निर्धनों का ख़ून चूसा जा रहा हो तो भी इस स्थिति में कोई अन्तर
नहीं पड़ता। यदि आपकी सरकार कुछ नेताओं या भारतीय समाज के मुखियों पर प्रभाव
जमाने में सफल हो जायें, कुछ सुविधाएँ मिल जायें, अथवा समझौते हो जायें,
इससे भी स्थिति नहीं बदल सकती, तथा जनता पर इसका प्रभाव बहुत कम पड़ता है।
हमें इस बात की भी चिन्ता नहीं कि युवकों को एक बार फिर धोखा दिया गया है
और इस बात का भी भय नहीं है कि हमारे राजनीतिक नेता पथ-भ्रष्ट हो गये हैं
और वे समझौते की बातचीत में इन निरपराध, बेघर और निराश्रित बलिदानियों को
भूल गये हैं, जिन्हें दुर्भाग्य से क्रान्तिकारी पार्टी का सदस्य समझा जाता
है। हमारे राजनीतिक नेता उन्हें अपना शत्रु समझते हैं, क्योंकि उनके विचार
में वे हिंसा में विश्वास रखते हैं। हमारी वीरांगनाओं ने अपना सबकुछ
बलिदान कर दिया है। उन्होंने अपने पतियों को बलिवेदी पर भेंट किया, भाई
भेंट किये, और जो कुछ भी उनके पास था – सब न्योछावर कर दिया। उन्होंने
अपनेआप को भी न्योछावर कर दिया। परन्तु आपकी सरकार उन्हें विद्रोही समझती
है। आपके एजेण्ट भले ही झूठी कहानियाँ बनाकर उन्हें बदनाम कर दें और पार्टी
की प्रसिद्धि को हानि पहुँचाने का प्रयास करें. परन्तु यह युद्ध चलता
रहेगा।
युद्ध के विभिन्न स्वरूप
हो सकता है कि यह लड़ाई भिन्न-भिन्न दशाओं
में भिन्न-भिन्न स्वरूप ग्रहण करे। किसी समय यह लड़ाई प्रकट रूप ले ले, कभी
गुप्त दशा में चलती रहे, कभी भयानक रूप धारण कर ले, कभी किसान के स्तर पर
युद्ध जारी रहे और कभी यह घटना इतनी भयानक हो जाये कि जीवन और मृत्यु की
बाज़ी लग जाये। चाहे कोई भी परिस्थिति हो, इसका प्रभाव आप पर पड़ेगा। यह आपकी
इच्छा है कि आप जिस परिस्थिति को चाहें चुन लें, परन्तु यह लड़ाई जारी
रहेगी। इसमें छोटी-छोटी बातों पर ध्यान नहीं दिया जायेगा। बहुत सम्भव है कि
यह युद्ध भयंकर स्वरूप ग्रहण कर ले। पर निश्चय ही यह उस समय तक समाप्त
नहीं होगा जब तक कि समाज का वर्तमान ढाँचा समाप्त नहीं हो जाता, प्रत्येक
वस्तु में परिवर्तन या क्रान्ति समाप्त नहीं हो जाती और मानवी सृष्टि में
एक नवीन युग का सूत्रपात नहीं हो जाता।
अन्तिम युद्ध
निकट भविष्य में अन्तिम युद्ध लड़ा जायेगा
और यह युद्ध निर्णायक होगा। साम्राज्यवाद व पूँजीवाद कुछ दिनों के मेहमान
हैं। यही वह लड़ाई है जिसमें हमने प्रत्यक्ष रूप में भाग लिया है और हम अपने
पर गर्व करते हैं कि इस युद्ध को न तो हमने प्रारम्भ ही किया है और न यह
हमारे जीवन के साथ समाप्त ही होगा। हमारी सेवाएँ इतिहास के उस अध्याय में
लिखी जायेंगी जिसको यतीन्द्रनाथ दास और भगवतीचरण के बलिदानों ने विशेष रूप
में प्रकाशमान कर दिया है। इनके बलिदान महान हैं। जहाँ तक हमारे भाग्य का
सम्बन्ध है, हम ज़ोरदार शब्दों में आपसे यह कहना चाहते हैं कि आपने हमें
फाँसी पर लटकाने का निर्णय कर लिया है। आप ऐसा करेंगे ही, आपके हाथों में
शक्ति है और आपको अधिकार भी प्राप्त है। परन्तु इस प्रकार आप जिसकी लाठी
उसकी भैंस वाला सिद्धान्त ही अपना रहे हैं – और आप उस पर कटिबद्ध हैं।
हमारे अभियोग की सुनवाई इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि हमने
कभी कोई प्रार्थना नहीं की और अब भी हम आपसे किसी प्रकार की दया की
प्रार्थना नहीं करते। हम आपसे केवल यह प्रार्थना करना चाहते हैं कि आपकी
सरकार के ही एक न्यायालय के निर्णय के अनुसार हमारे विरुद्ध युद्ध जारी
रखने का अभियोग है। इस स्थिति में हम युद्धबन्दी हैं, अतः इस आधार पर हम
आपसे माँग करते हैं कि हमारे प्रति युद्धबन्दियों जैसा ही व्यवहार किया
जाये और हमें फाँसी देने के बदले गोली से उड़ा दिया जाये।
अब यह सिद्ध करना आपका काम है कि आपको उस
निर्णय में विश्वास है जो आपकी सरकार के एक न्यायालय ने किया है। आप अपने
कार्य द्वारा इस बात का प्रमाण दीजिये। हम विनयपूर्वक आपसे प्रार्थना करते
हैं कि आप अपने सेना-विभाग को आदेश दे दें कि हमें गोली से उड़ाने के लिए एक
सैनिक टोली भेज दी जाये।
भवदीय,
भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव
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